औरत, आदमी और छत , भाग 40
भाग,40
कमला के बारे में सोचती हुई मिन्नी को नींद आ गईथी। सुबह नींद खुली तो रसोई की लाईट जल रही थी।
इतनी सुबह सुबह पोछा लगाने की क्या जरूरत है कमला।
नींद नहीं आ रही थी दीदी, तो सोचा क्यों न काम ही कर लूं।
अच्छा चल रख इसे चल थोड़ा घूम कर आते हैं।
जी दीदी।
कमला हाथ धोकर उसके साथ चल पड़ी थी
अब तुझे कहीं नहीं जाना कमला यहीं रहना है।
कोई चिंता करने की जरूरत नहींं है।
मुझे तो आप ही का सहारा है दीदी.
नहीं कमला हम सब को एक दूसरे का सहारा है,और रब की मेहर रहनी चाहिए सब पर।
बातचीत करती करती दोनों घर पहुँच ग ई थी।
घर आई तो देखा डुगू गेट पर ही खड़ा था। मिन्नी ने ताला खोला था।
क्या हुआ डुगू?
आप को लेकर ही टैन्शन में था मंमी, इतनी सुबह आप अकेले जाती हैं घूमने।
अच्छा जी मेरा डुगडुग इतना बड़ा हो गया कि ,माँ की चिंता होने लगी।
खैर, आज तो कमला मेरे साथ थी। तुम जाओ अपना दिनचर्या संभालो बेटा।
जी मंमी, पापा का बुखार कैसा है?
अभी तो नहीं है, दवा का असर हुआ है।
जी।
कमला मैं तेरे को मेरा सूट दे देती हूँ, वो पहन ले इस को धो ले।फिर दिन में जाकर दो तीन सूट सिलने दे आ।
मिन्नी ने अपने लिए चाय बनाई थी, वो चाय पी रही थी,सोच रही थी सुबह सुबह कितनी जल्दी होती थी ना, और आज इतने आराम से बैठी हूँ जैसे कोई काम ही नहीं है। दिन में दो पीरियड्स के लिए जाना पड़ेगा महीना भर।
चाय पीकर रोज की तरह सब्जी बना दी थी,याद ही नहीं रहा था।
माँ को चाय देने ग ई तो माँ उठी हुई थी,कमला के बारे में जानकर उन्हें भी बुरा लगा था।
यहीं रह लेगी कहीं नहीं जाना इस को अब।
जी माँ।
माँ आप थोड़ा घर में ही टहल ल़ो।अंदर अंदर।
ठीक कहती हो बहू, बैठे बैठे तो जुड़ जाँऊगी।
मैं मालिश कर दूं।
ना बेटी दोपहर में देखूंगी।
तूं जा वीरू को संभाल ले। बुखार उतरा है या नहीं।
अभी ठीक है माँ।
जाती हूँ देखती हूँ उठते हैं तो, सुबह सुबह उठाने वाले को भी तो डांट खाने के लिए तैयार रहना पड़ता है,आपके राजकुमार से।
माँ हँस देती है।
मिन्नी रूम में जाकर दरवाजे पर हल्की सी दस्तक देती है।
कोई जवाब नहीं, फिर दस्तक देती है।
मिन्नी देख कौन है,कम्बल मे मुँह लपेटे लपेटे वीरू बोलता है।
मैं ही हूँ, सरपंच साहब, उठेंगे क्या चाय ले आऊँ?
वीरू ने कम्बल हटाया था, तूं खुद ही यहाँ आजा, चाय तो मैंने नहीं पीनी ,आज तो सकून की नींद सोने दे यार, तुझे कहीं जाना थोड़े ही है।
ठीक है जब उठें तब आवाज दे देना। मैं चाय ले आऊँगी।
पर तूं जा कहाँ रही है?
मैं तब तक दूसरे काम देखती हूँ।
औ मैनेजमेंट, मुझे भी देख लिया कर। दरवाजे पर ऐसे खड़ी है जैसे मेहमान आई हुई है।
वीरेन आप, किसी भी वक्त कुछ भी कहनें लग जातें हैं।
घर में डुग्गु है , माँ है, कोई क्या कहेगा।
वो यहीं कहेंगे तेरे से कि मेरे पास मत बैठना।जा तुझे जो करना है कर ले कोई चाय वाय नहीं चाहिए मुझे। चाय लेकर भी तो आना यहीं पड़ेगा।फिर डुग्गु क्या कहेगा,और माँ क्या कहेगी।
उसने वापिस कम्बल ओढ़ लिया था। मिन्नी जानती थी कि उसने नाराज़गी ओढ़ ली है और बहुत जिद्दी भी है उसका पति।
तभी वीरेन्द्र का फोन बजा था, उसने कम्बल नहीं हटाया, वो जानता था कि मिन्नी उसकी ये नाराज़गी नही झेल सकती। मिन्नी ने फोन उठाया था।
वीरेन ,"रोशन का फोन है, उठो तो,"
तू कर ले बात , मुझे नहीं करनी किसी से बात।
उफ़्फ़, रोशन भी बार बार घंटी किये ही जा रहा था।
हैलो, मिन्नी ने फोन रिसीव कर लिया था।
भाभी, नमस्ते, भाई से बात करा दो जरूरी काम है।
भाई, मैं शहर आ गया हूँ, पटवारी का पता निकाल लिया था,उसी के घर बैठा हूँ, उसके तैयार होते ही मैं उसे घर ले आऊँगा।
यार रोशन अपन चल पड़ते उसके घर तूं सीधा अपने घर आ जाता।क्यों लोगों को परेशान करता है।
इसमें परेशानी क्या है भाई, आप उठो मैं पहुँचा आधे घंटे में।
ठीक है आ जा। मैं भी उठता हूँ। वीरेंद्र ने देखा मिन्नी नहीं थी वहाँ पर ।
जाने का बहाना ही ढूंढ रही थी जैसे, वो बड़बड़ाया था।
वो दोबारा लेटने ही वाला था कि चाय की ट्रे लेकर मिन्नी दरवाजे पर थी।
बुरी बात,चौधरी साहब, नाराज़गी मुझसे है, चाय क्यों ठंडी कर रहे हैं।।
वीरेन प्लीज़ चाय पी लें, मिन्नी उसके कम्बल में जगहं बना कर बैठ ग ई
तभी फोन की घंटी फिर बजी थी।
भाई साहब रोशन बोल रहा हूँ गाँव में झगड़ा हो गया, दोनों पक्ष आपसे मिलना चाहते है, यहीं घर बुलवा लूं न, गाँव तो आज नहीं जा पाओगे आप।
ठीक है बुला ले।
वीरेन ने उठ कर पानी लिया थाऔर चुपचाप चाय पीने लगा था।
मैं बैठक खुलवा देती हूँ, तबतक आप तैयार हो जायें, अलमारी से कपड़े निकाल दिए थे मिन्नी ने।
ज़िंदगी में सकूंन के दो पल नहीं है,साले। वो बड़बड़ा रहा था।
नहाना मत कपड़े बदल लें हाथ मुँह धोकर, वरना फिर बुखार हो सकता है।
क्लास लेनीं बंद कर मास्टरनी, मुझे जो करना होगा कर लूंगा।
मिन्नी चुपचाप बाहर निकल ग ई थी। कमला पहले से ही बैठक में झाड़ू लगा रही थी। मिन्नी ने वहाँ रखी कुर्सियाँ झाड़ दी थी। कमला ने पोछा लगा दिया था। आठ बज चुके थे, मिन् ने एक कप दूध और बिस्किट रखे थे प्लेट में,और रूम में चली ग ई थी।
सुनिए
कोई जवाब नहीं था।
वीरेन।
मिन्नी ने जैकेट पहनते हुए उसके हाथ पकड़ लिए थे, माफ नहीं करोगे।आय एम सारी। उसनें भी मिन्नी को बाहों में भर लिया था।
एक हद तक बदल सकता हूँ मिन्नी , उससे ज्यादा नहीं।
जी हुजूऱ
नाटक बंद और जो मैंने कहा है उस पर विचार कर लेना।
अच्छा बाबा अब गुस्सा थूक दो, ये दो बिस्किट खाकर दवा और दूध ले लो।
मुझे कुछ नहीं है, दवाई नहीं खानी मुझे।
वीरेन प्लीज़ मेरी खातिर, आज आज खा लो।
मेरी खातिर, तुम क्या करती हो मेरी खातिर, खाम्खा इमोशनली ब्लेकमेल करती रहती हो।
जो आप कहोगे वही ,करूंगी प्लीज ना ,डियर।
अच्छा ला दे क्या खिलाना है जिस के लिए इतना मस्का लगा रही है।
मिन्नी ने उसे दवाई और दूध दिया था।एक बिस्किट मुश्किल से खाया था उसने।तभी बाहर.घंटी बजी थी।कमला ने आवाज़ दी थी।
साहब, रोशन साहब आये हैं।।
आ रहा हूँ।
वो बाहर जाने लगा तो मिन्नी ने दोबारा सॉरी कहा था, क्योंकि उसके चेहरे से नाराज़गी ही झलक रही थी।
उसकी आँखों में झाकते हुए वीरू ने उसे बाहोँ में भर लिया था।उसके माथे पर स्नेह अंकित कर बाहर निकल गया था।
मिन्नी ने जाकर रसोई संभाली थी। माँ ने बैठे बैठै मैथी साफ कर रखी थी। मिन्नी ने आलू मैथी की सब्जी और कढ़ी बना दी थी। डुग्गु को कढ़ी बहुत पंसद है। कमला ने आटा लगा लिया था। पटवारी से बात करके वीरेन्द्र ने मिन्नी को कहा था, फिर फाइनल कर आऊँ इस प्लाट को, रजिस्ट्री करवा दूं।
आप देखें , मुझे क्या पता?
तभी डुग्गु
अंदर आया था।पापा ये चेक ले लो जो भरना हो आप भर लेना।रजिस्ट्री करवा लीजिए।
तूं रख चेकबुक को, मैं कर लूंगा।
पापा प्लीज़ आप रख लीजिए, और हाँ मंमी के नाम ही रजिस्ट्री करवा दीजिएगा।
वीरू की आँखें डुगू की तरफ उठी थी,उसका चेहरा स्पाट था।
मेरे नाम क्यों डुगू, तुम अपने नाम से ले लो , मैंने क्या करना है?
ये मकान पापा के नाम है, वो प्लाट आपके नाम हो जायेगा इसमें दिक्कत क्या है।
पर डुग्गु
प्लीज़ मंमी।
मिन्नी बाहर आ ग ई थी।
वीरेंद्र ने जाकर रजिस्ट्री करवा दी थी। डुग्गु को फोन कर दिया था,तेरी मंमी को ले आ, यहाँ फोटो खिचने के बाद ही रजिस्ट्री होगी। डुग्गु मिन्नी ओ ले गया था बाइक पर।मिन्नी इस क्षण बहुत भावुक हो रखी थी। वो डुग्गु के साथ वापिस आकर स्कूल चली ग ई थी। दो पीरियड्स लेकर वो ऑटो से घर आ ग ई थी। साढे तीन बज चुके थे। वीरेन्द्र घर पर ही था, बाहर मिट्टी से भरा ट्रैक्टर खड़ा था।वीरेंद्र उसी के मालिक से बात कर रहा था।वो चुपचाप अंदर आ गई थी। दस मिनिट के बाद वीरेंद्र अंदर आया था।
कितने दिन और जाना पड़ेगा स्कूल तेरे को?
जी कोई दस बारह दिन सिलेबस रहता है अभी।
दोपहर में जाकर करवा आया कर।
मैंने भी यही टाईम लिया है। बस आज ही देर हो ग ई,क्योंकि गई ही देर से थी।
तबियत कैसी है आपकी?
हुआ क्या है मेरे को जो हर पल इन्क्वायरी बैठा रखी है।
किसी टाईम तो प्यार से भी बोल लिया करो, चौबीस घंटों ,
बकवास बंद कर चाय बना दे एक कप।
मिन्नी बिना कपड़े बदले ही बाहर रसोई में चली गई और चाय बनाने लगी,तभी डुग्गु आया था।
मंमी मंमी सब्जी लाया हूँ गर पंसद न आये तो डॉटना मत प्लीज़।
क्यों परेशान हुआ बेटा, मैं ले आती।
पहले आप चेक करें कि मैं वो ला भी पाया हूँ कि नहीं जो लाना चाहिए था।
पहले पापा को चाय दे दूं फिर चैक करती हूँ,
मुस्कराती हुई मिन्नी बोली थी।
मिन्नी वीरेंद्र को चाय देकर आने लगी तो वो बोला, तेरी भी यहीं लेआ।
मैने आपके लिए ही बनाई है, मैं तो बाद में पी लूंगी।
बैठ जा फिर।
आती हूँ, डुगू सब्जी लेकर आया है,कह रहा है चैक करो, कैसी लेकर आया हूँ।
तूनें मंगवाई थी क्या उससे?
कभी उस के बाप से ही नहीं मगवाई,तो उस को तो क्या कहती। मिन्नी हँस दी थी।
तभी माँ की आवाज़ आई थी, मिन्नी मिन्नी
आई माँ, मिन्नी चली ग ई थी।
जी माँ,
तूंआज स्कूल से आकर मुझे मिली भी नहीं, मुझे तो अभी कमला ने बताया कि तूं आ ग ई है।
अरे माँ कपड़े भी नहीं बदले थे, अंदर घुसी ही थी कि आपके साहबजादे ने चाय की फरमाइश कर दी , वो भी गुस्से वाले तेवरों में।चाय बना ही रही थी कि आपका लाडला डुग्गु बोला ,मंमी सब्जी लाया हूँ चैक करके बताओ, ठीक लाया हूँ कि नहीं। मै तो यहीं सोच रही थी कपड़े बदल कर फिर चाय लेकर ही माँ के पास जाऊँगी।
पहले जा डुग्गु की सब्जी देख और उसे मेरे पास भेज।
जी माँ।
वो रसोई में ग ई तो देखा डुग्गु सब्जियों को करीने से रख रहा था।
डुगू मैं रख लूंगी बेटु , ये तुम्हारा काम नहीं है।
मंमी काम के ऊपर कोई मोहर थोड़ी ही लगी होती है,जिस को समय हो वही करले, फिर आपही तो करती हैं हमेशां, हम लोग तो यहाँ होते ही कितना है।
मिन्नी ने भावुकता से उस का सिर सहलाया था।
बहुत अच्छी और बढि़या सब्जियाँँ लाया है, मेरा बेटा। जाओ तुम्हें दादी बुला रही है। मैं रख लूंगी ये सब।
तभी कमला आई, दीदी ,साहब बुला रहें हैं मैं रख लूंगी ये सब ,और चाय भी बना लूंगी आप कपड़े बदल लें ।
जी बुलाया आपने।
मैं आफि्स की तरफ जा रहा हूँ,एक ट्रैक्टर वाला आएगा उसे ये पैसे दे देना। पाँच हजार हैं।
जी ठीक है।
वो बाहर निकल गया था। कमला की बहू मिन्नी के पास आई थी ।
आप माँ को बोलें मैडम ये घर चलें मेरे से गलती हो ग ई।
माँ हैं आपकी मना ले ,गर जाना चाहती हैं तो ले जायें।
दीदी मुझे कहीं नहीं जाना है, बरसों पहले अपने जिंदा पति का श्राद्ध करना पड़ा था,क्योंकि उसनें किसी दूसरी औरत के लिए मुझे धक्के मार कर बाहर निकाल दिया था।आज उसी के बेटे की बहू से कह रही हूँ कि मर ग ई वो कमला जो तुम्हारी सास थी और किसी की माँ थी,किसी की दादी थी,और मुझे किसी श्राद्ध की भी जरूरत नहीं है।रोटी और इज्ज़त की जरूरत तो बंदे को जीते जी होती है, मरने के बाद किसने क्या देखा है? दोबारा अपनी शक्ल भी मुझे मत दिखाना।
कमला वहाँ से अंदर चली ग ई थी।
बीस दिन के बाद डुग्ग को भी दिल्ली से बुलावा आ गया था। वो दिल्ली चला गया था।डिंकी घर आकर कृष्णा नानीका चैकअप करा ग ई थी।उन्हें कोई विशेष समस्या नहीं थी।दवाई और टह लना बताया था डाक्टर ने।
सर्द दिसंबर विदा ले गया था। वीरेंद्र गाँव कम ही जाता था,जाता तो मिन्नी को साथ ले जाता था।माँ के पास कमला होती ही थी। पीछे वाले प्लाट में मिस्त्री लगे हुए थे। वहाँ पर रनिंग ट्रेक बनवा दिए थे।पीछेकी दीवार तोड़ कर पहले वाले घर से जोड़ दिया था इस को, पिछली गली में भी गेट लगवा दिया था। इस काम के चलते मिन्नी की व्यस्तता और बढ़ ग ई थी। जीवन अपनी गति से दोड़ रहा था।
जनवरी भी विदा लेने वाली थी, वीरेन्द्र को अपनी किसी राजनीतिक मीटिंग के चलते चंडीगढ़ जाना था। दो दिन लगने थे। मिन्नी ने उसकी पैकिंग कर दी थी। खाना बना कर टिफिन भी पैक कर दिया था। रोशन भी साथ जा रहा था। वीरेंद्र बाथरूम में नहा रहा था,तभी उसके फोन पर दोतीन बार मैसेज की बीप हुई। मिन्नी ने फोन उठा कर चैक किया था ,तो वाटसएप पर किसी महिला की फोटो लगा नम्बर था।
कैसा है वीरू सरपंच, भूल ग ए हो शायद?
मिन्नी को बहुत अज़ीब सा लगा था,आज पहली बार उसने वीरेन्द्र का फोन चैक किया था और , ये मैसेज।
वो चुप चाप बाहर आ ग ई थी। रोशन ने गाड़ी में सब सामान सैट कर लिया था, वो माँ के पास ही बैठा था। मिन्नी चुपचाप पीछे बन रहे लान में चली ग ई थी। सुबह सुबह का समय था, मिस्त्री भी नहीं आये थे। वो वहाँ उदास बैठी उस मैसेज का अर्थ सोच रही थी।
वीरेंद्र नहा कर निकला था, कहाँ हो बेगम? ऐसा क्यों नहीं करती तुम भी साथ ही चलो। सफर हसीन हो जायेगा।
वातावरण में खामोशी ही बनी रही थी।
शायद बाहर चली गई, वो बड़बड़ाया था, तभी मोबाईल पर नजर पड़ी थी उसने फोन उठाया था ।मैसेज नया था,उसने खोला पर ये तो पहले ही किसी ने सीन कर रखा था, कमरे में तो मिन्नी ही थी,वो तो कभी फोन ही नहीं रिसीव करती।उसने आवाज़ लगाई थी, मिन्नी मिन्नी
कोई ज़वाब नही था।
कपड़े पहन कर बाहर आया, कमला रसोई में थी।
मिन्नी. कहाँ है?
अंदर ही तो थी साहब।
उसने माँ के कमरे में नज़र डाली तो वहाँ रोशन और माँ ही थे। अज़ीब औरत है।वो पीछे वाले लान की तरफ मुड़ा ही था कि एक कोने.में मिन्नी बैठी थी।उदास आँखों में नमी की लकीर भी थी।
कितनी देर से आवाजें लगा रहा हूँ, यहाँ क्या कर रही हो?
कोई काम है क्या?
वो समझ गया कि ये नाराज है,पर क्या हुआ?
क्या हुआ मिन्नी?
कुछ नया नहीं सरपंच साहब।
बकवास बंद कर और बता मुझे, मैं पहले ही लेट हो रहा हूँ।
मेरे लिए तो आपके पास समय होता ही नहीं है, होगा भी कैसे,कितने लोग है आप के चाहने वाले?
वीरेंद्र समझ गया कि वो मैसेज मिन्नी ने ही पढ़ा है, उसके होठों पर मुस्कान आ गई थी।
मोबाइल चैक किया था मेरा?
गलती हो गई,पर शायद ये गलती एक अरसा पहले ही करनी चाहिए थी, ताकि इतना लम्बा आजा़ब न झेलना पड़ता।सिसक उठी थी मिन्नी।
यार सीन मत क्रियेट करो,ऐसा कुछ नहीं है जो तूं सोच रही है।येऔरत जिस का मैसेज है वो लगभग माँ जैसी उम्र की है,और राजनीति में हैं, मैं तुझे मिलवा भी दूंगा।
किस किस से मिलवाओगे, सरपंच साहब?
मिन्नी ऐसा कुछ नहीं है, तेरा दिमाग खराब है, मैने बोला न मैं.इस को अभी प्रुव कर देता हूँ।
मुझे कोई प्रुव नहीं चाहिए।
तो मेरा दिमाग खराब करने का ठेका ले रखा है तूने, अंदर चलती है या जबरन ले जाऊँ?
क्या काम है आप काम बतायें?
वीरेंद्र ने उसी मैसेज वाले नम्बर पर काल लगा दिया था, वो भी वीडियो काल।
उधर से तुरंत किसी म हिला की आवाज़ सुनाई दी थी।
वीरू कैसा है तूं
मौसी मैं ठीक,आप बतायें, कैसे याद किया, अभी मैसेज देखा था आपका।
अरे बस वैसे ही याद कर लिया था बेटा, बहुत दिन हो ग ए कित बिजी हो रख्या है।
बस मौसी जल्दी ही आऊँगा।
तेरी माँ को भी ले आईयो, बहुत दिन हो ग ए मिले हुए।
जी मौसी, जरूर।
उसने फोन काट दिया था। हो गई तसल्ली या और कुछ चाहिए?
वो वहाँ से निकल गया था।मिन्नी भी वहीं बैठी रही थी। गाड़ी स्टार्ट हो गई थी,और् निकल भी गई थी।
आधा घंटा वहीं बैठी रही थी मिन्नी। सोच रही थी क्यों फोन उठाया ,क्या जरुरत थी,न उठाती न ही कोई सीन क्रियेट होता।
कमरे में आई तो उसके फोन पर लगातार घंटी बज रही थी।
देखा तो भतीजी का फोन था।
सब खैर हो , ये कहकर फोन उठाया था उसने।
मीनु बुआ कितनी दे हो गई है , फोन क्यों नहीं उठा रही थी।
अरे मैं उधर प्लाट में थी बेटा, अभी आई हूँ तो घंटी सुनी है।सब कैसे हैं।
बुआ मैं कुछ माँगू मना तो नहीं करोगी?
क्या बात है दिवी ,बोल बेटा?
बुआ आप प्लीज़ जल्दी घर आ जाओ, मुझे अपने जीवन का एक अहम फैसला करना है,मैं चाहती हूँ कि आप उस की साक्षी जरूर बने।हालांकि जब आप को जरूरत थी तब मेरी माँ बाप कोई भी नहीं था आपके साथ।पर मुझे पता है आप इ स सोच से ऊपर की औरत हैंं।आयेंगी न मीनू बुआ, मैं घर पर ही इंतजार कर रही हूँ।
दिव्या ,मिन्नी जैसे किसी अंधेरे कुएँ से बोल रही थी।
बेटा कोई जल्द बाजी मत करना मैं आ रही हूँ।
थैंक्स बुआ।
मिन्नी माँ के पास ग ई थी।
माँ मेरी भाभी की तबियत खराब है, मुझे बुला रही हैं चली जाऊँ क्या?
क्यों न जाये बेटी जरूर जाओ, तूं जाती ही कहाँ है?
जा फटाफट तैयार हो जा दोएकदिन लगा आईयो वीरू भी तो दोतीन दिन में ही आयेगा। मैं कह दूंगी तूं चिंता न कर।
पर आप अकेली माँ?
मैं शिवजीत को यहीं रख लूंगी दोएक दिन, तूं मिल आ तेरी भाभी से।
थैंक्स माँ।
कमला को सब दवाई समझा कर , माँ की शिवजीत भाई से बात करा कर मिन्नी बस पकड़ लेती है।
वीरेंद्र का कोई फोन नहीं आया था,तीन बज ग ए थे उसनें भी नहीं किया था। तीन घंटे के सफ़र में अतीत के समंदर में ही गोते खाती रही थी। बस एक झटके से रूकी थी,मिन्नी भी वर्तमान में आ चुकी थी।
आटो रिक्शा की तरफ़ जाते हुए हाथ से मोबाइल ही गिर गया था। टूटा तो नहीं था पर चला भी नहीं था।
ओफ्फ़
आटो पकड़ लिया था उसनें। रास्ते में एक जगहं बहुत ही विनम्र तरीके से आटो रूकवा कर मीलू हलवाई से एक किलो बरफी ली थी और एक किलो इमरती ली थी।इस की ये दोनों चीजें बहुत मशहूर थी।एक अरसा हो गया था ।ये दुकान रास्ते में पड़ती थी तो सोचा बच्चों के लिए यही ले लूं।दिव्या के एक बेटा बेटी है।आटो के रूकने की आवाज़ से उसके विचारों को विराम लग गया था।किराया देकर वो पैदल अपनी गली की तरफ़ चल पड़ी थी। घर वेसे ही था जैसे पहले था।भतीजे ने छोटी मोटी रिपेयर करवा दी थी।उसने कौनसा यहाँ रहना है? ठीक ही तो है।
बिना दस्तक ही दरवाजा खुल गया था। भतीजी उसके गले लगकर खूब रोई थी।मिन्नी ने भी अपना जी हल्का कर लिया था।एक दर्द का गुबार था ,जो आसूँओं के रास्ते निकल गया था।
भाभी ने कच्चे दूध की तेजपती की चाय बनाई थी, मिन्नी भी हाथमुँह धोकर आ गई थी। दिव्या के बच्चे बहुत ही प्यारे थे।उसने मिठाई दी तो प्यारी सी जुबान में "थैक्यू बुआ",बोल ग ए।
चाय पीकर भतीजी के साथ छत पर आ गई थी।
क्या बात है दिवी?
बुआ मैं विनोद के साथ और नहीं रह सकती, शराब, दूसरी औरतों से रिलेशनशिप, झगड़ा।कब तक बर्दाश्त करूं?
दूसरी मीनू बनना चाहती हो?
मेरी सरकारी नौकरी है, माँ है ही, बच्चों को पाल लूंगी।
कुछ सफ़र बोलने और बताने में बहुत आसान लगते हैं दिवी,पर तय करने बहुत मुश्किल हो जाते हैं डियर। दूसरी बात तुम्हारे पास नौकरी है, सही बात है, पैसे की समस्या नहीं होगी, बच्चे पल जायेंगे भाभी हैं,पर बच्चों के बाप की कमी कौन पूरी करेगा। बाप का लाड और स्नेह कौन देगा। कल को हो सकता है तुम्हारी ज़िंदगी में भी कोई आ जाये तो ,ये तो बहुत ही अज़ीब स्थिति बन जायेगी डियर न तुम बच्चों को छोड़ पाओगी न ही उस रिश्ते को , तमाम उम्र एक आजा़ब में गुजार दोगी।
पर बुआ विनोद का स्वभाव बहुत ही बेकार है।
तुम्हारी लव मैरिज है दिवी,इस लड़के ने तुम्हारी नौकरी लगने तक तुम्हारा इंतजार किया था। शादी के बाद कोई भी लड़का प्रेमी नहीं रहता, वो एक पुरूष एक पति बन जाता है।हाँ हम लड़कियाँ शायद प्रेमिका वाली भूमिका में ही रहती है,इसलिए शादियाँ टूटने के कागार पर आ जाती हैं। हम भारतीय लड़कियों को अपना वजूद तो बनाना ही है,पर अपने परिवार अपनी शादी को भी बचाने के लिए जतन करने पड़ते है,क्योंकि ये हमारे वजूद का ही हिस्सा है।
पर बुआ?
नहीं दिवी नहीं मेरी लाडो, मैं इसकी बिल्कुल भी पक्षधर नहीं रहूँगी कि तुम इतने प्यारे बच्चों को बिना बाप के कर दो।
माफी चाहूँगी बुआ रीति भी तो बिना बाप के रही है,पर आज कितनी बढि़या पोस्ट पर है।
रीति के जीवन में कितना रीतापन रहा है,कोई नहीं जान सकता , शायद मैं भी नहीं। वो तो कृष्णा आंटी का हमारे जीवन में आना और फिर रीति का उनके साथ जुड़ जाना।पर वो कमी उसकी कभी पूरी नहीं हुई जो एक सामान्य बच्चा अपने बाप से अपेक्षा रखता है। तीनों भाई बहनों में बहुत स्नेह है, बहुत जुड़े हैं आपस में।पर हर बच्चे का दिल रीति जैसा भी नहीं हो सकता लाडो।
रही रिलेशनशिप वगैरह वाली बातें तो उसने तो तुझे नहीं कहा न कि वो किसी और के साथ रहना चाहता है।
नहीं वो तो मुझे पता ही चल गया वो तो अव्वल दर्जे का फ्लर्ट है।
उस फ्लर्ट को फ्लर्टिंग का समय ही मत दो मेरी जान, बच्चों की जिम्मेदारी अपनी सास या माँ पर डाल दो,और नौकरी के बाद का सारा समय बड़े प्यार और इसरार से उस के लिए निकाल दो बिना कुछ चाहे।
वीरेंद्र फूफा जी आप को बहुत प्यार करते हैं न मीनू बुआ इसलिए ये सब आपको इतना आसान लग रहा है।
फीकी सी हँसी हँस दी थी मिन्नी ने। ये जो बाते तुझे बता रही हूँ न लाडो, ये सब किताबी नहीं है "मेरी जान" तेरी मीनू बुआ का पल पल का तजुर्बा है जो तेरी स्थिति को देखते हुए तुझे बता पाई हूँ, वरना ये सब मेरे साथ ही दफ़न हो जाना था।विनोद हो वीरेन्द्र हो या कोई और, सब लगभग एक जैसे ही होते हैं।घर बचाने की कोशिश हम भारतीय औरतों को मरदों से ज्यादा करनी पड़ती है,और करनी भी चाहिए क्योंकि हमारे संस्कार हमारी परंम्परायें परिवार के अंर्तगत आती हैं।।
पर बुआ मैं तो उसे बोल कर आई थी कि ज़िंदगी भर तुम्हारी शक्ल नहीं देखूंगी।
गुस्से में बोली ग ई बात थी वो, मोबाइल पे मैसेज डाल दो, यू मिसिंग हिम,एंड यू लव हिम।
वो भी तो कर सकता था ऐसा।
कोई बात नहीं तुम कर दो,तुम ही तो कहकर आई थी कि शक्ल नहीं देखूँगी, उसने तो ऐसा नहीं कहा था।
बुआ किस चीज की बनी हो तुम?
चलो अब तुम मैसेज करो उसे मैं नीचे भाभी और बच्चों के पास हूँ।
उसका जवाब भी देख लेना बुआ, तानें ही सुनायेंगे।
बी पाजीटिव डियर। मिन्नी नीचे आ ग ई थी
वीरेंद्र चंडीगढ़ आ गया था।रास्ते में उसे अपना दोस्त और मिन्नी का दूर का कजिन मिला था।विवेक ने तो उसे अनदेखा कर दिया था पर वीरेंद्र ने ही उसे गाड़ी साइड पर लगाने को कहा था।और खुद उतर कर गया था।
क्या बात विवेक, देख कर भी अनदेखी।
नहीं नहीं, सरपंच वीरेन्द्र सिहँ , ऐसा कैसे हो सकता है साहब?
वीरू के होठों पर एक मुस्कान आ ग ई थी।
है तो अपनी बहन का ही भाई ना, वो भी जब नाराज़ होती है तो, बहुत ही आदर से नवाज़ देती है।
फीकी सी हँसी हँस दिया था विवेक।
अच्छा ये बता मै रात को तेरे पास रूकूं तो तेरे को दिक्कत तो नहीं होगी।
मुझे क्या दिक्कत होगी जनाब,हाँ आप को दिक्कत न हो, ये सोच लीजिएगा। हम साधारण से आदमी हैं।
तेरी तो साले, अच्छा पीछे गाड़ी मे मेरे साथी भी हैं मैं इनको छोड़ कर पहुँच रहा हूँ।
ठीक है, लोकेशन भेजूं क्या?
बस यार बहुत नही हो गया।बिल्कुल ही पीछे पड़ गया अपनी बहन की तरह।
तूं पहुँच, मैं घंटे भर में आ रहा हूँ।
मिन्नी ने सास को फोन करके मोबाइल खराब होने की बात बता दी थी। भतीजी का नम्बर कमला को लिखवा दिया था।कोई बात हो तो फोन कर ले। बच्चों से भी बात कर ली थी। रीति तो रातको ही बात करती थी।वो अपनी ट्रेनिंग और् यूपीएसी की तैयारी में बहुत ही व्यस्त थी।
मीनू मेरे को दे मैं फोन दिखा लाती हूँ तेरा।
अरे भाभी सुबह में देख लेंगे। अभी तो अंधेरा घिर आया है। फिर सबसे बात हो गई है। दोनों नम्बर बता दिए हैं,आपका भी और दिव्या भी।
साढे सात बजे के करीब, वीरेंद्र विवेक के घर पहुँचा था।घंटी बजाई तो विवेक ने ही दरवाजा खोला था। अंदर का सन्नाटा बता रही थी,अंदर कोई नहीं है।
भाभी और बच्चे कहाँ है?
वो अपने मायके गई है , बच्चे अपने अपने ठिकाने ,बेटी जाब कर रही है दिल्ली और बेटा हास्टल, उसका फाइनल है, एमबीबीएस का।
वाह बच्चे बड़े बड़े हो गए, समय कितनी तेजी से भाग जाता है न विक्की।
विवेक को झटका सा लगा था, बहुत अरसे बाद किसी ने उसे विक्की कहा था, वो तो ये नाम भूल ही चुका था।
तूं गर्म चाय लेगा या ठंडी?
भाभी घर पर नहीं है तो ठंडी चाय ही ले लेंगे।मैं गाड़ी में से ले आता हूँ।
रहने दे, वीरू यहाँ मेरे पास भी है,और अपना पुराना ब्रांड ही है।
वाह यार थैंक्यू, फिर से गुजरे ज़माने में लौट चलते हैं।
लौटना कभी मुनास़िब होता है यार वीरू, बस यादों में ही जीना पड़ता है।
क्या हुआ विक्की सब ठीक तो है?
कुछ नहीं यार तुझे देखकर गुजरे जमाने की यादों में खो गया था।
दोनों दोस्त दो दो पैग ले चुके थे। तभी घटीं की आवाज़ सुनाई दी थी।
इस वक्त कौन होगा? वीरू ने कहा था।
खाना ऑर्डर कर रखा था,शायद वही होगा।
विवेक एक बड़ा सा टिफिन ले आया था।
अच्छा वीरू बच्चे कैसे हैं?
डुग्गु तो बाक्सिंग में चला गया, रीति एसडीएम बन गई है, डिंकी ग्रेजुएशन कर रही है।
डुग्गु के बारे में पढ़ा था अखबार में,और रीति के बारे में भी।
मीनू का नम्बर बदल गया है शायद, बात करना चाह रहा था, पर हुई नहीं।
मेरा नम्बर तो वही है,कब से। तेरी मीनू से हट कर भी तो अपना एक रिश्ता है दोस्ती का।
तेरे से तो बात करनें का मन ही नहीं था वीरू। पीछे पता चला था तेरे बारे में कि पुरानी मौजमस्ती में ही जीते हो। मुझे मीनू के लिए बहुत दुख हुआ था।मेरे ही कारण तुम उससे मिले थे तो अपराध बोध भी था।
यार ऐसा कुछ नहीं है, सब छोड़ दिया है।
मीनु जैसी लड़की का जीवन में आना किसी वरदान से कम नहीं था वीरू, पर तूने भी उसकी कद्र नहीं की। पता नहीं कैसे नसीब लिखवा कर लाई है ये लड़की।
यार विक्की प्लीज़, छोड़ दे इस टापिक को,मैने खुद को बहुत बदल लिया है। मैं लापरवाह जरूर रहा हूँ,पर तेरी बहन से बहुत प्यार करता हूँ।
वीरेंद्र ने अपना फोन निकाल कर नम्बर डायल किया था।नम्बर आफ था। इस की ये खामोशी ओढ़ने वाली आदत है न पागल कर देगी मुझे।
क्या हुआ?
वीरू ने उसे सुबह वाली घटना बताई थी,और अब नम्बर आफ बता रहा है।
यार बहुत नेकसीरत बीवी मिली है तुझे, तेरी भाभी को ही ले ले महीने में पंन्द्रह दिन बाहर रहती है,कभी माँ के पास तो कभी बहन के पास। घूमना फिरना और शापिंग। यहाँ बाहर का खाना खा कर पेट ही खराब रहने लग गया है।
तूं मना क्यों नहीं करता ,जाने क्यों देता है।
वो मुझसे पूछ कर नहीं मुझे सिर्फ बता कर जाती है दोस्त।
वीरू ने माँ का नंबर मिलाया था।
माँ तेरी लाडली बहू फोन बंद करके बैठी है फिर कुछ कहदूंगा तो तू मेरे को ही सुना देती है।
अरे वीरू मिन्नी का फोन गिर गया था,खराब हो गया है।
तो बात करा दे माँ।
मिन्नी पीहर ग ई है भाई, यहाँ नहीं है,उसकी भतीजी का फोन आया था।उसकी भाभी ठीक नहीं थी, तो मैंने कहा कि तू चली जा, वीरू भी दोएकदिन में आयेगा।इस बहाने मिल भी लेगी। रास्ते में ही फोन गिर गया और खराब है गया।उसकी भतीजी का नम्बर है, शिवजीत बताता है तेरे को।
शिवजीत को मैने यहीं रोक लिया था। मिन्नी मुझे अकेले छोड़ कर नहीं जा रही थी तो मैंने इस को फोन कर दिया था। बेचारी कहीं निकल ही नहीं पाती है। मैने भेजा है वीरू, कभी बहू पै डांट मारने लग जाये।
कुछ नहीं डांट मारता मैं किसी को। नम्बर बता दे माँ।
शिवजीत के बताये नम्बर पर फोन किया था वीरू ने।
भ ई वीरेंद्र सिहँ बोल रहा हूँ। मिन्नी से
फूफा जी नमस्ते, दिव्या बोल रही हूँ।
कैसी हो दिव्या?
जी ठीक हूँ फूफा जी।
आपकी मंमी कैसी हैं, माँ बता रही थी बीमार हैं आपका फोन आया था, तो मिन्नी वहाँ गई है।
जी माँ की तबियत ठीक नहीं थी और बुआ से मिलना चाह रही थी, मैं भी आई हुई थी ,सो हमने बुआ को फोन किया था।
मैं आपकी बात करवाती हूँ, बुआ से।वो मंमी के पास बैठी हैं। मैं बच्चों को सुलाने आई थी।
मिन्नी ने फोन लिया था, जी कहिए?
मुझे भी तो बता सकती थी,कि भाभी के पास जाना है। दोनों सास बहू अपनी राजनीति चलाती रहती हो।
मुझे लगा कि शायद आपको मेरे से बात करने की जरूरत ही न हो, फिर माँ ने तो कह ही दिया था।
तानें मत मारा कर बेगम, दिमाग खराब हो जाता है। अच्छा सुन मैं परसों शाम तक घर आ जाऊँगा, मुझे तू घर में ही चाहिए।ठीक है।
जवाब नहीं दिया बेगम, कहीं ऐसा तो नहीं कि भाभी की बीमारी का बहाना हो और तू नाराज़गी में ग ई हो।
ऐसा कुछ नहीं है सरपंऊ साहब, आ जाऊँगी मैं परसों तक।
अच्छा, ले तेरे भाई से बात कर विवेक से। इसी के पास रूका हुआ हूँ।
मीनू कैसी है बहना?
अच्छी हूँ भैया, आप कैसे हैं?
मैं भी ठीक हूँ , एक बात बता वीरू तेरे को परेशान तो नहीं करता ना।
नहीं सब ठीक है भाई। भाभी कैसी हैंऔर बच्चे?
बच्चे अपने अपने घरोंदों की तलाश में और भाभी तेरी अपने मायके।
भैया कभी आईयेगा घर।
जरूर आऊँगा।अपना ख्याल रख ना।
तभी फोन वीरू ने ले लिया था, और बाहर आ गया था।
सुबह नया फोन ले ले। मैं तेरे अकाउंट में पैसे डाल देता हूँ।
रहने दीजिएगा।मैं बाद में देख लूंगी।
मिन्नी नाराज़ मत हो यार, क ई बार तू गलत खामोशी ओढ़ लेती है, इस वक्त तुझे बहुत मिस कर रहा हूँ डियर।
आप अपना ध्यान रखें मैं सुबह बात करती हूँ।
टाल रही है ना।
फोन दिव्या का है वीरेन, और उसकी कोई काल वेटिंग में चल रही है।
गुड नाईट।
ठीक है पर सुबह सुबह काल कर लेना बेगम।
जी।
दिव्या तुम्हारी काल वेटिंग में चल र ही है, चैक करो।
बुआ विनोद की ही है।
बात करो आराम से और प्यार से ही बात करना।
दिव्या ने फोन किया तो कहाँ बिजी थी इतनी देर , अभी तो तूं मुझे मिस कर रही थी, अभी किसी और को मिस करने लग ग ई थी क्या?
बात कहने से पहले सोच लिया करें कि क्या बोल रहा हूँ। मीनु बुआ आई हुइ हैं उनका फोन गिर गया था,तो वो घर में बात कर रही थी।
लेने आ रहा हूँ अभी तैयार मिल।
बुआ आई हुई हैं आज,और आपने वाईन ले रखी है,अच्छा नहीं लगेगा उन के सामने।पहली बार मिलेंगी वो आपसे। आप कल आ जाना, वरना मैं ही आ जाऊँगी।
ये तमीज़ बुआ ने ही सीखा दी है क्या, " शराबी से" आपने वाईन ले रखी है, पर आ गई हो। और सुन बस में धक्के खाने की जरूरत नहीं है, बच्चों के साथ। मै सुबह आ जाऊँगा।
ठीक है।
भाभी को सब पता था वो मिन्नी की अहसान मंद थी कि उसने ये घर टूटने से बचा लिया था।
वो मेरी भी कुछ लगती है भाभी।
नम आँखों से भाभी ने मिन्नी का सिर सहलाया था।
रात को माईग्रेन का अटेक आ गया था।नींद की दवा भी खानी पड़ी थी।सुबह पाँच बजे उठने वाली मिन्नी आठ बजे तक बेसुध पड़ी थी। वीरेन्द्र के तीन फोन आ चुके थे।
फूफा जी, दो बजे तो सोई ह़ै वो।
चलो जब भी वो उठें मैसेज कर देना, मुझे टैन्शन रहेगी।मेरी साढे आठ बजे मिनिस्टर साहब के साथ मीटिंग है। मैं फोन साइलेंट पर रखूँगा।पर मैसेज चैक करता रहूँगा।
जी फूफाजी।
नौं बजे मिन्नी की नींद खुली थी।
कैसी हो बुआ?
अब ठीक हूँ बेटा।
बुआ मेरी टैन्शन की वजह से आपको ये दर्द हुआ ना।
बिल्कुल भी नहीं डियर। ये दर्द तो मेरे साथ ही रह ता है।
अच्छा सुन तूं भी तैयार हो जा बाजार चलते हैं,अपने शहर के बाज़ार ग ए एक अरसा हो गया।
जी बुआ। पर पहले फूफा जी को मैसेज कर दो कि आप ठीक हो। उन के बहुत फोन आ चुके है।
मिन्नी हँस कर गुडमार्निंग सरपंच साहब टाईप कर देती है।
लव यू बेगम का मैसेज तुरंत वापिस आ जाता है।
बाजार से मिन्नी भतीजी और उसके बच्चों के लिए कपड़े लेती है।
पर बुआ ये सब क्यों, आप मेरे लिए यहाँ आई, ये ही बहुत रहा मेरे लिए।
कुछ उम्र की और कुछ रिश्तों की रस्में होती हैं दिवी वो जरूर निभानी चाहिए।
मिन्नी ने अपने लिए भी एक बहुत बड़ी और पुरानी दुकान से सूट खरीदा था।
मैं जब छोटी थी न दिवी तो इस दुकान से कपड़ा खरीदना मेरा एक सपना था।बुआ भतीजी दोनों की आँखे नम हो गई थी। अतीत को याद करके।
घर पहुँची तो विनोद आया हुआ था।दिव्या और विनोद को अपने घर आने का आमंत्रण देकर बड़े प्यार से विदा किया थि मिन्नी ने। वो खुद भी जाना चाह रही थी,पर भाभी ने एक रात और का वास्ता देकर रोक लिया था। भाभी एक पोलीथीन में से काले रंग की चिकन कढ़ाई का कपड़ा निकाल कर लाई थी।तुझे काला रंग और चिकन बहुत पंसद थी न मीनु। तेरे भतीजे की डयूटी थी लखनऊ, वहाँ से स्पेशल मंगवाया था मैंने तेरे लिए। बहू तो हँस रही थी,ये भी क्या गिफ्ट हुआ माँ।पर उसे कैसे समझाती ये सब। मैने रख दिया था ,तूं कभी आयेगी तो दूंगी तेरे को।भरी आँखों से मिन्नी ने वो रख लिया था। ये रात भी बीत गई थी। अगले सप्ताह भाभी को दिव्या के पास शिफ्ट होना था ।
मिन्नी को तैयार होते होते बारहा बज गए थे। दिल ही नहीं चाह रहा था निकलने को। भाभी भी नहीं चाह रही थी कि वो जाये आज।उसी की पंसद का खाना बना था।तभी बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आई थी।वीरेन्द्र अंदर आया था।
भाभी ने बहुत स्नेहिल ढंग से स्वागत किया था उसका।
पर आप तो बीमार थी।
दिव्या बुआ से मिलना चाह रही थी तो मेरी ढीली तबियत को बीमारी बता कर बुला लिया बुआ को।
भाभी ने वीरेन्द्र को खाना खिलाया था,और चलती दफह जबरन पाँच सौ रूपये विदाई के दिए थे। नम आँखों से मिन्नी गाड़ी में बैठ ग ई थी।रास्ते से मिन्नी ने मीलू हलवाई से दोनों मिठाईयाँ खरीदी थी।
हमे नहीं पता था हमारी बेगम इमरती खाने का शौंक रखती हैं वरना दुकान ही न खोल लेते हलवाई की।साला राजनीति में रखा भी क्या है।
घर पहुँच कर वीरेंद्र ने उसे नया मोबाइल दिया था।
पर ये ठीक हो जायेगा ना।
नया रख ले।उस को छोड़ दे। या फिर इस को बस मेरे फोन के लिए रख ले।
मुस्कुरा दी थी मिन्नी, और उस की मुस्कराहट को अपने आगोश में समेट लिया था वीरू ने।
कभी तकरार कभी प्यार, कभी रूठना कभी मनाना, कभी खिलखिलाना,तो कभी खामोशी ओढ़ लेना, ज़िंदगी यूंही भागती जा रही थी। रीति का यूपीएससी में चयन हो गया था।उसी के पसंद के एक आइ ए एस अधिकारी से बड़ी धूमधाम से विवाह करवाया था वीरेन्द्र ने उसका। डुग्गु ने भी अपनी ही साथी खिलाड़ी से शादी की थी। डिंकी का हरियाणा सिविल सर्विसेज में चयन हो गया था। पर वो भी अपनी दीदी की तरहं यूपीएससी म़े जाना चाहती थी।और उस के लिए प्रयास रत थी।
कृष्णाआंटी रीति के पास ही रहती थी। रीति अपनी नानी को कभी नहीं छोड़ती ।
वीरू सरपंच अपनी सरपंचनी के साथ जीवन के नये पड़ाव का आनंद ले रहा है।
समाप्त
लेखिका, ललिताविम्मी.
आप सभी को सादर स्नेहिल अभिवादन।
आप का इस कहानी के प्रति स्नेह मुझे हमेशां प्रोत्साहन देता रहा। आप लोगों की समीक्षाओं तथा संदेश बाक्स में जो स्नेह इस कहानी के जरिये मुझे मिला वो मेरे लिए वाकई बहुत अमूल्य है। आप सब का तहेदिल से शुक्रिया,🙏🙏
भविष्य में भी आप के स्नेह और दुआओं की तलब़गार
विम्मी
aruni
25-May-2022 10:12 PM
Itni badhiya content kaise likh leti hai aap ?
Reply
HENA NOOR AAIN
22-May-2022 06:27 PM
Bahut khoob
Reply
Amir
13-Mar-2022 01:08 AM
अच्छा है
Reply